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Wednesday 2 September 2009

Good Poem...

एक जंग हारा हूँ मैं... ये कहना हैं मेरे यारो का
नतीजे का अखबारों में, दीवारों पे इश्तेहारों का

जो मिलता हैं मिल कर अफ़सोस जता देता हैं
होंठो के पोरो में दबी कोई बात बता देता हैं

कहते हैं बहुत बुरा हुआ, जो ये मेरे साथ हुआ
खवाब सारे चलते गए, अरमान हर धुँआ हुआ

मेरे कुछ कहने से पहले ही नजरिये बन चुके हैं
मैं हार चुका हूँ सब अपने आप समझ चुके हैं

आँखों में मेरी कुछ उदासी जो झलक आई थी
जाने कितनी ही बातें मौजूद हर शख्स ने बनायीं थी

सुन उनकी बातें मैं कुछ कुछ खुद पर शुबा करने लगा
क्या सच में हार चुका हूँ इस सवाल से डरने लगा

आईने में पोशीदा अक्स दिखा तो कुछ तस्सली हुई
की उसकी नजरो में अब तक मेरी चमक थी बची हुई

उससे बातो के चंद सिलसिले फिर जो चले
छंट गई धुंध तमाम, ख्वाब सारे खोये मिले

उसने कहा की क्या हुआ एक हार जो मिली
सांसे अब भी चल रही, नहीं थमी ये जिंदगी

की मौका मिला हैं तुझे जो, कमर तू फिर से
कसकितना ही कहे ये जमाना, होना न तू टस से मस

सफ़र अभी ख़त्म नहीं, ख़त्म काम नहीं
विराम तो था.. मगर ये पूर्ण विराम नहीं

हारा नहीं तू यार मेरे, जब तक तू रहा हैं
लड़जीतने कि हैं कूबत तुझमे, अपना तू विश्वास कर

उठ... , बढ़... कि... सफ़र ये पूरा कर
गिरे भी तू अगर, तो फिर उठ... फिर आगे बढ़

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